जितेन्द्र वर्मा (संवाददाता जयपुर)

जयपुर,, सेन समाज की 27वीं पदयात्रा डीसीएम से रवाना होकर विभिन्न मार्गो से होकर बड़ी चौपड़, सुभाष चौक, जोरावर सिंह गेट, गंगापोल, बस बदनपुरा दिल्ली बाईपास होते हुए अलवर नारायणी धाम सती स्थल पहुंचेगी यात्रा का जगह-जगह स्वागत किया गया व स्टॉल लगाई गई नारायणी माता मंदिर राजस्थान के मुख्य शहर अलवर से लगभग 80 और अमनबाग से 14 किलोमीटर दूर सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के किनारे पर स्थित अलवर का एक बहु प्रतिष्ठित मंदिर है जहा नारायणी माता भगवान शिव की पहली पत्नी सती का अवतार रूप मानी जाती है नारायणी माता मंदिर का निर्माण सफेद संगमरमर से किया गया है जिसे अच्छी तरह से सजाया और डिजाइन किया गया है मंदिर की साइड में छोटा सा गर्म पानी का झरना इसे और अधिक लोकप्रिय बनाता है नारायणी माता मंदिर भारत में सैन समाज का एकमात्र मंदिर है जिसकी पवित्रता माउंट आबू, पुष्कर और रामदेवरा में मंदिरों के समान मानी जाती है यह मंदिर सैन समाज के लिए उनकी आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है जहा वसंत मोसम के दोरान देश के बिभिन्न कोनो से तीर्थ यात्रियों के भीड़ देखी जाती है इस मंदिर में बनिया (अग्रवाल) को जाने की अनुमति नहीं है। 1993 से पहले हर साल मंदिर स्थल पर स्थानीय लोगों द्वारा एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता था, जिसे स्वर्गीय श्री राजीव गांधी द्वारा प्रतिबंधित किया गया था यदि आप अपने सांसारिक जीवन के सभी तनावों से दूर कुछ समय शांति और आस्था का अनुभव करना चाहते है तो आपको अलवर के इस पवित्र मंदिर की यात्रा अवश्य करनी चाहिए पौराणिक कथा के अनुसार, नारायणी माता, भगवान शिव की पहली पत्नी सती का अवतार मानी जाती है। माना जाता है कि जब नारायणी पहली बार अपने ससुराल जा रही थीं, तो घर जाते समय एक सांप ने उनके पति को बीच में काट लिया था, जिससे उनके पति की मृत्यु हो गई नारायणी दुःख से इतनी त्रस्त हो गई थीं कि वह उनके बगल में बैठकर भगवान शिव जी से प्रार्थना करने लगीं कि या तो उनके पति को जीवन दे या अपने मृत पति के साथ सती होने की अनुमति दे भगवान शिव के प्रति उनकी भक्ति और अपने मृत पति के साथ जुड़ने की उनकी इच्छा इतनी प्रबल थी कि शिव ने दोनों को भस्म करने के लिए अपनी पवित्र अग्नि को भेज दिया। और वह अपने पति के साथ सती हो गई थी।  उसी समय से वहा नारायणी माता के मंदिर के स्थापना मानी जाती है इस सती प्रथा को बंद करने के लिए श्री राजीव गांधी जी द्वारा 1993 से पहले हर साल मंदिर स्थल पर स्थानीय लोगों द्वारा आयोजन होने वाले एक बड़े मेले को प्रतिबंधित कर दिया गया था